भीलवाड़ा(नीलेश कांठेड़ ). दुनिया गुणों की कम सुंदरता की ज्यादा पुजारी है। जितना समय हम गुणों को ग्रहण करने में नही लगाते उससे अधिक समय हम चेहरे को सुंदर बनाने में लगाते है। जरूरत चेहरे को नहीं जीवन ओर आत्मा को सुंदर बनाने की है। ये विचार आगमज्ञाता प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शांतिभवन में गुरुवार सुबह नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। सैकड़ो श्रावक-श्राविकाओ की मौजूदगी में उन्होंने जीवन मे खुद को जानने का महत्व समझाते हुए कहा कि जो अपने को जानने में जान नहीं लगाते वह अपनी आत्मा के जानी दुश्मन होते है। जो अपने को जान लेते है वह समय आने पर जिन बन जाते है। ये चातुर्मास निज को जानने के लिए है।
समकितमुनिजी ने कहा कि आगमकार कहते है जब तक बुढापा न आए तब तक धर्म कर लूं जबकि हमारी सोच अभी विपरीत है। होना ये चाहिए कि शरीर स्वस्थ है तब तक धर्मस्थल पर जाकर जिनवाणी सुन ले। शरीर को बुढापे में जब बीमारियां घेर न् ले उससे पहले धर्म कर ले। उन्होंने कहा की जीवन मे पैसा महत्वपूर्ण है लेकिन उससे अधिक महत्व पुण्य व धर्म का होना है उस तरफ ध्यान देना चाहिए। प्रवचन में गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. ने “तुम्हारे प्यार ने गुरुवर हमको तुमसे जोड़ा है” गीत पेश किया। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. एवं का भी सानिध्य मिला। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के अध्यक्ष अध्यक्ष राजेंद्र चीपड़ ने किया। संचालन मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया।
*सैकड़ो श्रावक- श्राविकाओ ने लिया तेला तप का प्रत्याख्यान*
पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मास स्वागत के उपलक्ष्य में सामूहिक तेला तप आराधना के अंतिम दिन गुरुवार को सैकड़ो श्रावक- श्राविकाओ ने तेला तप का प्रत्याख्यान लिया। तपस्या सुखसाता से सम्पन्न हो इसके लिए पूज्य समकितमुनिजी म.सा. द्वारा प्रवचन के बाद बड़ी मांगलिक प्रदान की गई। शांतिभवन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने बताया कि तेला तप आराधकों के सामूहिक पारणे शुक्रवार 15 जुलाई को सुबह 7 से 8.30 बजे तक शांतिभवन में होंगे।