चितोड़गढ़ में दो दिवसीय सत्संग प्रवचन का पहला दिन
चित्तौड़गढ़। राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि कपड़े बदलकर संत बनना सामान्य बात है, पर मन को बदलकर संत बन जाना सौभाग्य की बात है। हमारे में और अन्य संतों में ज्यादा फर्क नहीं है। बाकी सब संत अगले जन्म को स्वर्ग बनाते हैं और हम इसी जन्म को स्वर्ग बनाते हैं। अगर कोठी में रहने वाले लोग आपस में लड़ते हैं तो समझो वह कोठी साक्षात नरक है और कुटिया में रहने वाले लोग आपस में प्रेम से रहते हैं तो समझो वह कुटिया भी साक्षात स्वर्ग है।
संत ललितप्रभ प्रताप नगर कन्या गुरुकुल के पास सिंधी कॉलोनी में आयोजित दो दिनी प्रवचन माला के अंतर्गत श्रद्धालु भाई बहनों को जीवन को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर संबोधित कर रहे थे। संतप्रवर ने कहा कि दुनिया में इतने शास्त्र है कि जिन्हें पढ़ा नहीं जा सकता, धरती पर इतने मंदिर है कि सब जगह जाया नहीं जा सकता है और विश्वभर में इतने संत हैं कि व्यक्ति उन्हें देख नहीं सकता एवं उनके प्रवचनों को सुन नहीं सकता, पर जीवन को खुशियों से भरना है तो व्यक्ति केवल चार मंत्र अपनाए – सोच को सकारात्मक बनाए, स्वभाव को सरल बनाए, जुबान से मीठा बोले और चेहरे पर मुस्कान रखे। जिसके जीवन में ये चार मंत्र आ जाते हैं वह दुनिया का सबसे सुखी इंसान बन जाता है।
सकारात्मक सोच के मालिक बनें
संतश्री ने कहा कि जिंदगी आधा गिलास पानी है। इसे आधा खाली देखेंगे तो दुखी होंगे और आधा भरा देखेंगे तो सुखी होंगे। अगर आपकी पत्नी गुस्सैल है तो सोचिए मेरे पत्नी तो है, कई लोग कंवारे घूम रहे हैं। अगर आप सांवले हैं तो सोचिए कोई आप पर कभी बुरी नजर नहीं डालेगा। अगर नुकसान हो जाए तो सोचिए दिवाला तो नहीं निकला, दिवाला भी निकल जाता तो मैं क्या कर सकता था। इस तरह जो भीतर में हर समय सकारात्मक विचारों का चिंतन करता है वह सदा खुश रहता है।
सरल स्वभाव के मालिक बनें: स्वभाव को सरल बनाने की सीख देते हुए संतश्री ने कहा कि सरल स्वभाव वाले परायों के दिल में भी जगह बना लेते हैं और टेढ़े स्वभाव वाले घर वालों के दिल में भी जगह नहीं बना पाते। अगर आपका स्वभाव अच्छा है तो पत्नी आपके घर आने पर खुश होगी अन्यथा आपके घर से जाने पर खुश होगी। सोचो आप क्या चाहते हो? उन्होंने कहा कि हमसे नेक काम हो तो करें, पर भूलचूक कर मधुरता को न छोड़ें। याद रखें, स्वर्ग के राज्य में वही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है जो मधुर स्वभाव का मालिक होता है।
जुबान को मीठा बनाएँ
जुबान को मीठा बनाने की प्रेरणा देते हुए संत ललितप्रभ ने कहा कि कड़क जुबान से औछी बात कहने की बजाय मीठी जुबान से अच्छी बात कहने की आदत डालें। सौ बिगड़े हुए कार्यों को सुधारने के लिए एक मीठी जुबान काफी है। जीभ व दाँत का उदाहरण देते हुए संतश्री ने कहा कि जीभ नरम होती है इसलिए पहले आती है और अंत तक साथ रहती है जबकि दाँत कड़क होते हैं इसलिए बाद में आते हैं और पहले उखड़ जाते हैं। व्यक्ति दाँत की तरह कड़क नहीं जीभ की तरह नरम बने। याद रखो, जीभ का सही इस्तेमाल करने वाले सब जगह सम्मान पाते हैं और जीभ का गलत इस्तेमाल करने वाले सब जगह अपमानित होते हैं।
हर परिस्थिति का आनंद लेने की कला सीख लेनी चाहिए
इससे पूर्व डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर ने संबोधन देते हुए कहा कि खुशियाँ किसी के बाप की नहीं, अपने आपकी होती है। अगर हमारा फैसला है कि मैं हर हाल में खुश रहूँगा तो दुनिया की कोई ताकत हमें नाखुश नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि आनंद हमारा स्वभाव है इसलिए खाने को मिल जाए तो खाने का आनंद लें और न मिले तो उपवास का आनंद लें, चलें तो यात्रा आनंद लें और बैठें तो आनंद की यात्रा करें। शादी हो जाए तो संसार का आनंद लें और न हो तो शील का आनंद लें। व्यक्ति को हर परिस्थिति का आनंद लेने की कला सीख लेनी चाहिए। जो अपने आपको किसी भी हालत में प्रभावित होने नहीं देता वह सदा खुश रहता है। उन्होंने कहा कि जीवन में कब क्या हो जाए इसका कोई अता-पता नहीं है। जब लक्ष्मी की अवतार सीता को भी अपने बच्चों को जन्म लेने के लिए किसी ऋषि के आश्रम में शरण लेनी पड़ी तो हमारी क्या बिसात है। व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण से प्रेरणा ले कि जिनके जन्म के समय कोई थाली बजाने वाला नहीं था और मृत्यु के समय कोई रोने वाला नहीं था। फिर भी वे जिंदगी भर हँसते-मुस्कुराते हुए जिएँ। उन्होंने कहा कि घर-परिवार के लोग तो जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, इसलिए उनके सुधारने की भूल न करें। पूरी दुनिया को सुधारने का ठेका न तो भगवान का है न हमारा, पर अगर हमने खुद को सुधार लिया तो सदा खुश रहने में सफल हो जाएंगे।
जीवन को सहजता से जिएँ
खुश रहने का पहला मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि दुनिया में जो मिला है, जैसा मिला है, उसका स्वागत करना सीखें। अगर बेटा कहना माने तो ठीक और न कहना मानें तो सोचें कि रोज-रोज कहने की झंझट समाप्त हो गई। हमें कहीं सम्मान मिलने वाला, पर उसके बदले अपमान मिल जाए तो उसे सहजता से स्वीकार कर लें। उदाहरण के माध्यम से समझाते हुए संतश्री ने कहा कि कभी जीवन में सुख आए तो समझना चाचाजी आए हैं वे सौ का खाएँगे और पाँच सौ देकर के जाएंगे और दुख आए तो समझना दामाद आया है, दो सौ का खाएगा और ऊपर से हजार लेकर जाएगा। फिर भी हम चाचा से ज्यादा खुश दामाद के आने पर होते हैं। इसलिए जीवन में सुख आए तो कहिए वेलकम, पर दुरूख आए तो कहिए मोस्ट वेलकम।
हर हाल में संतुष्ट रहें
खुश रहने का दूसरा मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि भगवान ने हमें हमारे भाग्य से ज्यादा दिया है इसलिए रोना रोने की बजाय हर हाल में संतुष्ट रहें और जो मिला है उसके लिए भगवान को शुक राना अदा करें। उन्होंने कहा कि भगवान से दो लोग माँगते हैं जो मंदिर के बाहर मांगते है वे गरीब भिखारी हैं, पर जो मंदिर के अंदर मांगते हैं वे अमीर भिखारी हैं। इसलिए व्यक्ति अमीर बने, पर असंतुष्ट अमीर नहीं, नहीं तो हम सदा भिखारी बनें रहेंगे।
हमेशा मुस्कुराते हुए जिएँ
खुश रहने के तीसरे मंत्र में संतश्री ने कहा कि मुस्कुराता हुआ चेहरा दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा होता है। काला व्यक्ति भी जब मुस्कुराता है तो बहुत सुंदर लगता है, और गौरा अगर मुँह लटकाकर बैठ जाए तो बहुत भद्दा दिखने लग जाता है। इसलिए हर दिन की शुरुआत मुस्कुराते हुए करें। हमारे जेब में भले ही न हो मोबाइल पर चेहरे पर सदा रहे स्माइल। उदाहरण से सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा कि जब हम फोटोग्राफर के सामने पांच सैकंड मुस्कुराते हैं तो हमारा फोटो सुंदर आता है और हम अगर हर पल मुस्कुराएंगे तो सोचो हमारी जिंदगी कितनी सुंदर बन जाएगी।
भजन पर थिरका पांडाल
इस अवसर पर जब संतप्रवर ने जीवन है उपहार प्रभु का इसको रोशन कीजिए…का भजन सुनाया तो श्रद्धालु मस्ती में खूब थिरके। संतो के प्रताप नगर पहुंचने पर श्रद्धालु भाई बहनों द्वारा धूमधाम से स्वागत किया गया। प्रवचन कार्यक्रम में इंद्रमल सेठिया, दिनेश मेहता, सुरेश राठौड़, सुनील गांधी, अरविंद नागोरी आदि अनेक लोग उपस्थित थे।