मादापुर नामक गाँव में रहने वाला राजय्या धनी व्यक्ति था। विरासत में उसे काफी संपत्ति मिलने पर भी, वह बहुत लालची था। ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और जोड़ने के चक्कर में पड़कर वह नाना प्रकार के काम करता। इसलिए उसने अपने परिवार की और ध्यान देने में समय ही नहीं दिया। उसके मित्र हमेशा सलाह देते रहे कि लालची होना अच्छी बात नहीं। अपने पास जो है, उससे सन्तुष्ट रहना चाहिए। किन्तु राजय्या ने कभी उनकी बात सुनी ही नहीं। उसके घनिष्ट मित्र सीतय्या ने सोचा कि अपने मित्र को इस लालचीपन से छुटकारा दिलाना चाहिए।
सीतय्या ने एक दिन राजय्या से आकर कहा – “रामापुरम गाँव के एक जमींदार हमें जितनी जमीन चाहिए, उतनी जमीन मुफ्त में दे रहे हैं। ”
यह सुनते ही राजय्या को अब एक मिनट के लिए भी रुकने की इच्छा नहीं हुई। तुरन्त अपने मित्र के साथ जमींदार के गाँव पहुँचा।
जमींदार ने राजय्या की और गहरी सोच से देखते बोला- “उधर देखो! उत्तर दिशा की और जो ज़मीन है, वह मेरी है। सूर्यास्त से पहले जितनी दूर तुम चलकर, वापस आआगे उतनी जमीन तेरी होगी। लेकिन शर्त यही कि तुम्हें सूर्यास्त तक वापस आजाना होगा। अभी दोपहर होगया है। इसलिए कुछ खाकर आराम करने के बाद जा सकते हो।” लेकिन लालची रामय्या को खाने-पीने और आराम करने में समय खोने की इच्छा नहीं हुई।
भूखे पेट ही वह तुरन्त निकल गया ताकि ज्यादा से ज्यादा दूर जा सके और ज़मीन पा सके। वह उत्तर दिशा की ओर दौड़ पड़ा। चलता रहा- चलता रहा। चलते – चलते सोचने लगा कि अब यह सारी ज़मीन थोड़े ही घण्टों में मेरी हो जाएगी। चलते – चलते बहुत थक गया। वापसी बहुत मुश्किल लगने लगी। भूख और थकान के मारे वह आरंभिक बिन्दु तक जाने में विफल हुआ। आधे रास्ते में ही सूर्यास्त हो गया। बड़ी मुश्किल से अंधेरे में अपने लक्ष्य तक पहुँचा।
जमींदार ने राजय्या से कहा – “तुम यहाँ सूर्यास्त से पहले नहीं आ सके। अब लगायी गई शर्त के अनुसार तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला है।”
इसे सुनकर राजय्या को निराशा हुई। वह पछताने लगा – “काश! मैं पहले आ गया होता तो भी मुझे काफी जमीन मिल गयी होती। ”
थोड़ी देर के बाद उसे खुद अपनी गलती समझ में आयी – “सच तो यह है कि मेरे लालच ने मुझे सच्चाई की पहचानने नहीं दिया। मुझे जो मिलता है, उसीसे सन्तुष्ट होना पड़ता
है। तब जाकर मैं खुश रह सकता हूँ।”
उसके बाद उसने जीवन में लालचीपन को कभी भी अपने पर हावी नहीं होने दिया ।
(साभार : समग्र शिक्षा राजस्थान, संकलन: शंकर लाल चावड़ा)