उदयपुर। आज भी वनवासी समाज में संत के रूप में पूजे जाने वाले बिरसा मुण्डा न केवल वनवासी समाज में धर्म के प्रति आस्था को प्रगाढ़ करने वाले महापुरुष थे, अपितु अंग्रेज शासन के अनाचार-अत्याचार के खिलाफ अलख जगाने वाले प्रखर नायक भी थे। वनवासी समाज की संस्कृति के संरक्षण में बिरसा मुण्डा के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह रामदत्त चक्रधर ने शुक्रवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में बिरसा मुण्डा को उनकी पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि अर्पित करने के दौरान कही। वनवासी समाज में धर्म और राष्ट्र के लिए अलख जगाने वाले बिरसा मुण्डा को उन्होंने संस्कृति और राष्ट्र को समर्पित महामनीषी बताते हुए कहा कि 1899 में रांची क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ उनगुलान नामक क्रांति में उनके चार सौ अनुयायी मारे गए और इतने ही बंदी बना लिए गए थे। अंग्रेज पुलिस ने बिरसा को भी सोते हुए गिरफ्तार कर दिया। उन्हें रांची जेल में रखा गया। वर्ष 1900 की 9 जून को उन्होंने जेल में ही अंतिम सांस ली।
इस अवसर पर प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने कहा कि मात्र पच्चीस वर्ष के जीवन में बिरसा मुण्डा ने वनवासियों में स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेरणा जगाई, वह अनुकरणीय है। वे धर्मान्तरण, शोषण और अन्याय के विरुद्ध सशक्त आवाज बने।
पुष्पांजलि कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चित्तौड़ प्रांत ग्राम विकास प्रमुख श्याम बिहारी ने भी विचार रखे। इस अवसर पर बिरसा मुण्डा की प्रतिमा पर पुष्पार्पण भी हुआ। केन्द्र देखने आए पर्यटकों को भी बिरसा मुण्डा के बलिदान के बारे में बताया गया।