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फतहनगर - सनवाड

श्रावणी तीज पर ठाकुर जी को धराया चुनरी श्रृंगार

तीज पर महिलाओं ने किया पूजन एवं कथा श्रवण कर उल्लास से मनाया पर्व
फतहनगर। बुधवार को श्रावणी तीज पर यहां के द्वारिकाधीश मंदिर में हरियाली आच्छादित चून्दड़ का ठाकुरजी को श्रृंगार धराया गया। सायंकाल सवा सात बजे हिण्डोलना मनोरथ के लिए दर्शन खोले गए। आरती एवं प्रसाद वितरण के साथ ही लोगों ने ठाकुरजी के दर्शन किए। कीर्तन भी चला। दिन में तीज की महिलाओं ने मंदिर प्रांगण में कथा श्रवण भी की।
महिलाओं के लिए श्रावणी तीज काफी महत्वपूर्ण है। यही वजह रही कि आज महिलाएं हरी चून्दड़ में सजधज कर मंदिर पहुंची तथा कथा श्रवण किया। इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं क्योंकि इस दिन महिलाये अपने हाथों, कलाइयों और पैरों आदि पर विभिन्न कलात्मक रीति से मेंहदी रचाती हैं। इसलिए हम इसे मेहंदी पर्व भी कह सकते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा मेहँदी रचाने के पश्चात् अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेना भी एक परम्परा है।
इस उत्सव में कुंवारी कन्याओं से लेकर विवाहित युवा और वृद्ध महिलाएं सम्मिलित होती हैं। नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होती है। हरियाली तीज के दिन सुहागन स्त्रियां हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। आज के दिन महिलाएं व्रत भी करती है। इस व्रत में सास और बड़े नई दुल्हन को वस्त्र, हरी चूड़ियां, श्रृंगार सामग्री और मिठाइयां भेंट करती हैं। इनका उद्देश्य होता है दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग हमेशा बना रहे और वंश की वृद्धि हो।
पौराणिक किवदंती के अनुसार इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। 108 वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवन शिव पति रूप में प्राप्त हो सके। तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव-पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है। साथ ही देवी पार्वती के कहने पर शिवजी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और शिव व पार्वती की पूजा करेगी उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी तथा साथ ही योग्य वर की प्राप्ति होगी। सुहागन स्त्रियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होगी और लंबे समय तक पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसलएि कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत को रखती हैं।

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