जयपुर, 7 जुलाई। राज्य सरकार अब सरकारी निर्माण कार्यों में उपयोग में आने वाली कुल बजरी की मात्रा में कम से कम 25 प्रतिशत एम सेंड के उपयोग के प्रति गंभीर है। अतिरिक्त मुख्य सचिव माइंस, पेट्रोलियम व जलदाय डॉ. सुबोध अग्रवाल ने बताया कि राज्य सरकार ने बजरी के सस्ते व सुगम विकल्प के रूप में एम सेंड के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में एम सेंड नीति लागू की है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत द्वारा जारी एम-सेंड नीति में सरकारी निर्माण कार्यों मेें बजरी के विकल्प के रूप में कम से कम 25 प्रतिशत एम सेंड का उपयोग अनिवार्य है। एम सेंड नीति जारी होने के बाद अब प्रदेश में कुल मिलाकर 36 एम सेंड इकाइयों द्वारा एक करोड़ 20 लाख टन वार्षिक उत्पादन होने लगा है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव माइंस डॉ. सुबोध अग्रवाल गुरूवार को सचिवालय में निदेशक माइंस श्री केबी पण्ड्या व अधिकारियोें के साथ एम सेंड नीति की प्रगति समीक्षा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि मुख्य सचिव श्रीमती उषा शर्मा ने भी सभी संबंधित विभागों से निर्देशों की पालना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि राज्य सरकार की एम सेंड नीति के अनुसार राज्य सराकार के सभी सरकारी, अर्द्धसरकारी, स्थानीय निकाय, पंचायतीराज संस्थाएं एवं राज्य सरकार की वित्त पोषित अन्य संस्थाओं को जनवरी 21 के बाद जारी होने वाले कार्यादेशों में एम सेंड की कम से कम 25 प्रतिशत मात्रा के उपयोग को अनिवार्य किया गया है। राज्य सरकार ने बजरी के सहज, सस्ता व सुगम विकल्प और पर्यावरण व पारिस्थितिकी सुधार के लिए एम सेंड नीति जारी करते हुए यह आदेश जारी किए थे। इसके साथ ही एम सेंड इकाइयोे को प्रमोट करने के लिए राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना में आकर्षक प्रावधान किए गए हैं। रिप्स में एम सेंड इकाई को उद्योग का दर्जा, एसजीएसटी पर 75 प्रतिशत निवेश सब्सिडी, विद्युत शुल्क, भूमि कर व स्टाम्प शुल्क में शत प्रतिशत छूट दी गई है। इसी तरह से दो करोड़ या उससे अधिक के निवेश पर एसजीएसटी पर 25 प्रतिशत की अतिरिक्त सब्सिडी, प्लांट/मशीनरी मेें निवेश हेतु 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान एवं 20 प्रतिशत निवेश के बराबर पूंजी सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। अतिरिक्त निदेशक श्री बीएस सोढ़ा को बजरी और एम सेंड नीति के क्रियान्वयन के लिए प्रभारी अधिकारी बनाया हुआ है। एसीएस माइंस डॉ. अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान के साथ ही कर्नाटक, तेलगांना व तमिलनाडू मेें बजरी के विकल्प के रुप में एम सेंड का प्रमुखता से उपयोग किया जा रहा है। कर्नाटक में सर्वाधिक 2 करोड़ टन, तेलंगाना में 70 लाख 20 हजार टन और तमिलनाडू मेें 30 लाख 24 हजार टन एम सेंड का सालाना उत्पादन हो रहा है।
निदेशक माइंस श्री केबी पण्ड्या ने बताया कि एम सेंड नीति के अनुसार एम सेंड इकाई के लिए अलग से खनन प्लाट आरक्षित कर नीलामी और ओवरबर्डन डम्प्स से नीलामी द्वारा 10 साल की अवधि का परमिट दिए जाने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बताया कि एम सेंड निर्माण कार्य के लिए बेहतर होने के साथ ही बजरी की तुलना मेें सस्ती, सहज उपलब्धता और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती है। निदेशक श्री केबी पण्ड्या ने बताया कि विभाग द्वारा नई एम सेंड इकाइयों की स्थापना के लिए प्रेरित किया जा रहा हैं वहीं सरकारी विभागोें के निर्माण कार्यों मेें कम से कम 25 प्रतिशत एम सेंड के उपयोग की अनिवार्यता से बजरी के विकल्प को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
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