आकोला(नवरतन जैन) ।
माता रोगियों की सूनती है पूकार और पीड़ा करती है दूर
प्रतियोगी परीक्षा में भी वड़ली माता का आया था प्रश्न।
आकोला से मात्र एक किमी दूर रायपुरिया रोड़ पर उतर दिशा की ओर खेतों के बीच स्थित है वड़ली माताजी का देवरा जो बेहद पुराना बताया जाता है। इसकी प्राचीनता को लेकर कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नही है। लेकिन कहा जाता है कि पुराने जमाने में यहां विशाल बरगद का पेड़ रहा होगा जिसके नाम पर स्थान को वड़ली माताजी कहा जाने लगा होगा। इस बारे में देश के प्रसिद्ध इतिहासकार व मूलतः आकोला के रहने वाले डॉ श्रीकृष्ण जुगनू जी का कहना है कि देवियों के नामकरण पेड़ों के नाम से ही हुएं हैं, जैसे उदाहरण के तौर पर आम से आमज माता। हालांकि अब वड़ली माताजी के स्थान पर बरगद का पेड़ नही है। कुछ साल पहले तक यह स्थान जर्जर अवस्था में था। वर्तमान में देवरा ठीक ठाक हालत में है हालांकि देवरे पर छत नही है। देवरे के अंदर स्थानक पर अनेक देवी मूर्तियां स्थापित हैं और पास में ही बारिया बनी हुई है। यहां आने वाले श्रद्धालु एवं बीमार व्यक्ति बारियों से परिक्रमा करते हैं तथा धागा बांधते हैं। पास ही बड़ा त्रिसूल लगा है। ऐसी मान्यता है कि वडली माता जी व्याधि ग्रस्त रोगियों की पूकार सूनती है और उन्हें ठीक करती है। कहा जाता है कि बीमार बच्चों की पूकार तो दूर से ही सून लेती है। विभिन्न बीमारियों से पीड़ित रोगी आसपास व दूरदराज इलाकों से वड़ली माताजी के दरबार में आते हैं। वडली माता के चमत्कार की चर्चा जनमानस में होती रही है। माता की सवारी शेर की मानी जाती है और इस बारे में इतिहासविद श्रीकृष्ण जुगनू कहते हैं कि संभवत पुराने जमाने में यहां पत्थर के बने शेर चढ़ाने की परंपरा रही होगी तथा स्वयं उन्होंने भी इस स्थान पर पत्थर के बने शेर काफी साल पहले यहां देखें थे। राजस्थान के जाने-माने इतिहासकार और साहित्यकार डॉ महेंद्र जी भाणावत ने कई साल पहले आकोला के कर्मयोगी सरल हृदय के धनी स्व मोहन लाल जी टेलर और उनके सुपुत्र और इतिहासकार डॉ श्रीकृष्ण जुगनू के साथ वड़ली माताजी के स्थानक पर जाकर यहां से संबंधित जानकारी आदि जुटाईं थी। उल्लेखनीय है कि डॉ महेंद्र जी भाणावत द्वारा तैयार की गई राजस्थान की लोक देवियां नामक किताब में भी आकोला की वड़ली माताजी का उल्लेख किया गया था। इसके बाद यह स्थान पूरे प्रदेश में चर्चित हो गया। कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रतिभागियों से यह प्रश्न पूछा गया था कि चितौड़गढ़ जिले के आकोला गांव में माताजी का स्थान है। यह प्रश्न वडली माता के संबंध में था। वड़ली माताजी का यह देवरा आकोला एवं गुंदली ग्राम पंचायत की सरहद पर स्थित है और इसके चहुंओर खेत है तथा पास ही में बेडच नदी बहती है। संभवत देवरे तक जाने आने के लिए सार्वजनिक रास्ता नही है। श्रद्धालुओं को खेतों की पगडंडी से होकर ही आना जाना पड़ता है। बारिश के दिनों में तो ज्यादा ही परेशानी आती है। देवरे के आसपास अधिकतर खातेदारी क़ृषि भूमि है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर वड़ली माताजी का देवरे तक पक्की सड़क कैसे बन सकती है। इस बारे में आकोला व गुंदली ग्राम पंचायत के साथ ही लोगों को इस बारे में सोचना चाहिए ताकि इस जन आस्था के केंद्र वड़ली माताजी के परिसर का कायाकल्प हो सके।