(नवरतन जैन ) ।
हस्तशिल्प पर आधारित पारंपरिक व आधुनिक कलात्मक रंगाई छपाई के लिए प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला कस्बे का इतिहास भी काफी पुराना माना जाता है। यहां के प्राचीन मंदिर,मठ, आश्रम, शिवालय, देवालय, कुंड, बावड़ी व धुणी आदि स्थान आकोला गांव की प्राचीनता को रेखांकित करते हैं।बेडच नदी के तट पर टीले पर आबाद आकोला गांव अतीत में संभवत अनेक बार बसा और उजड़ा, जिसके प्रमाण गांव में नए निर्माण के समय आज भी खुदाई के दौरान यहां मोटी दीवारें, बड़ी बड़ी ईटे पुराने खंडहर आदि एतिहासिक अवशेष का मिलना यह साबित करते हैं। यहां अनेक धुणी व समाधियां है, इससे जाहिर होता है कि यह गांव पहले कभी साधु संतों व महात्माओं की तपोस्थली भी रहा होगा। ऐसी ही एक समाधि आकोला में हैं। मान्यता है कि यह समाधि जीवित साधु की है। कस्बे में बेडच नदी के ठीक किनारे पर अखाड़ा चौक के पास रिटायर्ड शिक्षक दौलत नाथ जी योगी के घर के पिछवाड़े परिसर में प्राचीन समाधि है। ऐसा कहा जाता है कि यहां सैकड़ों वर्ष पहले किसी सिद्धहस्त साधु ने यहां जीवित समाधि ली थी। इस समाधि का कुछ वर्ष पहले जीर्णोद्धार कराया गया था। यहां जीवित समाधि लेने वाले महात्मा नाथ संप्रदाय के रहे होंगे। इस समाधि के चमत्कारिक किस्से व किवदंतिया जनमानस में प्रचलित रहे हैं। वर्तमान में इस स्थान को चिराजी बावजी के नाम से जाना जाता है। वैसे कस्बे की वर्तमान पीढ़ी इस प्राचीन स्थान से लगभग अनभिज्ञ हैं। ऐसी मान्यता है कि इस समाधि पर सच्चे मन से मन्नत मांगने वाले की मनोकामना पूरी होती है। समाधि स्थल के बीच में दीपक की लौ की तरह दिखने वाले पत्थर की बड़ी शिला स्थापित है। यह पत्थर शिला भी प्राचीन लगती है।गौर से देखने पर इस शिला पर एक ऋषि महात्मा की आकृति खुदी हुई दिखाई देती है। महात्मा के एक हाथ में फरसा दिखाई दे रहा है। ऐसा भी दिखाई देता है कि ये साधु एक पांव को घुटने के यहां से पीछे की तरफ कुछ मोड कर खड़े है। रिटायर्ड शिक्षक दौलत नाथजी योगी ने बताया कि इस समाधि के इतिहास के बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।यह सच है कि उस काल में यहां किसी तपस्वी साधु-संत ने जीवित समाधि ली थी और उन्हे संभवत पूर्वा मुखी समाधि दी गई होगी। इसका प्रमाण समाधि की दिशा व इस पर स्थापित शिलाखंड के पूर्वामुखी होना। समाधि की नियमित सेवा पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि पुराने जमाने में आकोला व आसपास के गांवों सहित दुरदराज इलाकों से बडी संख्या में लोग समाधि के दर्शन करने आते थे। इसी समाधि के समानांतर कुछ ही दुरी पर नदी के किनारे ही एक खेत में समाधि और है।