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उदयपुर

उदयपुर की संतोषी बाई का शीतल प्रेम, भीषण गर्मी में प्यासों के लिए देवदूत बनी है संतोषी बाई

उदयपुर। भीषण गर्मी के दौर में तपती हुई धूप में राहगीर को शीतल जल मिल जाए तो उसे बड़ा सुकून मिलता है। जल सेवा एक पुण्य कार्य है और यही सेवा कार्य पिछले 17 वर्षों से करती आ रही है 80 वर्षीय संतोषी बाई कुमावत। इस उम्र में भी निस्वार्थ भाव से सेवा के इस पुनीत कार्य को अंजाम देने वाली संतोषी बाई प्यासों के लिए देवदूत बनी हुई है।
उदयपुर शहर के फतहपुरा चौकी के पास एक शीशम के पेड़ के नीचे बाई पिछले 17 सालों से राहगीरों को पानी पिलाने का पुण्य काम कर रही है। शीतल पेयजल उपलब्ध कराने के लिए वे किसी राहगीर से कोई राशि भी नहीं मांगती है। स्वेच्छा से कोई कुछ दे जाए तो मना भी नहीं करती। कई लोग संतोषी बाई की इस जलसेवा से खुश होकर अपनी तरफ से कुछ राशि देकर इस कार्य को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित भी करते रहते हैं।
संतोषी बाई कहती है ईश्वर ने सब कुछ अच्छा किया, अब धन-दौलत का कोई मोह नहीं रहा। अब तो जलसेवा करते-करते मौत आ जाये तो जीवन सफल हो जाए। इसलिए तपती लू में राहगीरों की सेवा कर रही है। बाई से पहले इनके पति भी इस क्षेत्र में पानी पिलाते थे। 80 साल की उम्र में वह छोटी सी बाल्टी में धीरे-धीरे चलकर पानी भरती है। उनके इस काम में एक बोहरा समाज के व्यक्ति इनकी मदद करते है। वो बाई को पानी भरने देते है, मटकियां रखने देते है और यदा-कदा अन्य मदद भी करते है। बाई कहती है बोहरा जी भले आदमी है वरना कौन इतनी मदद करता है।
संतोषी बाई की जलसेवा के कार्य पर सामाजिक कार्यकर्त्ता सुनील पंडित कहते हैं, ताउम्र धन-दौलत के मोह में फंसे मानव जीवन में बुढ़ापे में मोह की कड़ी को तोड़ना आसान नहीं है लेकिन संतोषी बाई ने अपने नाम के अनुरूप जीवन में संतुष्टि को अनुभूत कर लिया है और एक-एक कर के मोह की तमाम कडि़यों को निकालकर फेंक दिया है। तभी तो बाई का अब एक ही लक्ष्य है भलाई लेकर जाना, बुराई का त्याग करना। यह उदाहरण एक पानी पिलाने वाली महिला की कहानी नहीं है बल्कि जीवन को समझने की बेहतर कि़ताब है।

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