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उदयपुर

एम्स जोधपुर और एस्ट्राजेनेका इंडिया के सहयोग से इंडिया-स्वीडन हेल्थकेयर इनोवेशन सेंटर (आईएसएचआईसी) ने डायबिटीज मैनेजमेंट में नर्सेज के अपस्किलिंग प्रोग्राम की शुरुआत की

राजस्थान. स्वीडिश ट्रेड कमिश्नर ऑफिस, एम्स नई दिल्ली और एम्स जोधपुर के बीच साझेदारी के साथ गठित इंडिया-स्वीडन हेल्थकेयर इनोवेशन सेंटर ने ‘स्किल फॉर स्केल’ प्रोग्राम की  शुरुआत की है। यह एक ऐसी ई-लर्निंग पहल है, जिसके माध्यम से नर्सेज को व्यावहारिक ज्ञान से लैस करने की तैयारी की गई है, ताकि वे गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन के लिए रोगियों की देखभाल से संबंधित नवीनतम तरीकों को अपना सकें। यह कार्यक्रम एम्स जोधपुर द्वारा प्रमाणित है और स्वास्थ्य विज्ञान महानिदेशालय (डीजीएचएस) द्वारा समर्थित है और इसके तहत देश भर के नर्सेज को निशुल्क पंजीकरण करने और अपनी सुविधा के अनुसार सीखने का अवसर मिलेगा।
इस प्रोग्राम के पहले चरण में एनपीसीडीसीएस के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए एनसीडी डोमेन के भीतर उपलब्ध विविध संसाधनों से निर्मित विश्व स्तरीय व्यापक पाठ्यक्रम पर आधारित डायबिटीज मैनेजमेंट, इस रोग की रोकथाम और इससे संबंधित जागरूकता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सामग्री और मॉड्यूल का निर्माण एम्स जोधपुर के विशेषज्ञों की टीम और एम्स दिल्ली, आईसीएमआर, स्वास्थ्य विज्ञान महानिदेशालय (डीजीएचएस), भारतीय नर्सिंग परिषद (आईएनसी) और एस्ट्राजेनेका के प्रतिनिधियों के साथ एक सलाहकार बोर्ड द्वारा किया गया है। मधुमेह को रोकने और प्रबंधित करने के लिए लोगों को मानकीकृत और गुणवत्ता परामर्श, देखभाल और सहायता सेवाएं प्रदान करने के लिए नर्सों को लैस करने के लिहाज से बुनियादी और उन्नत मॉड्यूल बनाए गए हैं।
पहले वर्ष में 5000 नर्सों को लक्षित करने वाले अपस्किलिंग कार्यक्रम की आवश्यकता के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए एम्स जोधपुर के डायरेक्टर डॉ संजीव मिश्रा ने कहा, ‘‘हमारे देश में गैर-संचारी रोग आज भी सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी एक महत्वपूर्ण समस्या बने हुए हैं और मृत्यु दर और रुग्णता के अनुपात के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को नियंत्रित करने में हमें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि हमारे पास प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की कमी, अपर्याप्त ज्ञान और कौशल वाले प्राथमिक देखभाल प्रदाता जैसी कुछ चुनौतियाँ हैं। इस पहल के माध्यम से हम मरीजों की देखभाल से संबंधित नॉलेज गैप को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। इस कार्यक्रम का पाठ्यक्रम सावधानी से तैयार किया गया है ताकि नर्सों को भारत में गैर-संचारी रोगों की बढ़ती घटनाओं के साथ रहने वाले रोगियों के लिए विशेष देखभाल, आवश्यक सहायता सेवाएं और मानकीकृत परामर्श देने में सक्षम बनाया जा सके।’’
गैर-संचारी रोगों के बोझ को कम करने की वर्तमान दौर की जरूरत को समझते हुए इंडिया-स्वीडन हेल्थकेयर इनोवेशन सेंटर ने एक ऑन्कोलॉजी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस भी बनाया है जो कैंसर रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित करता है और उन्हें व्यापक कैंसर देखभाल प्राप्त करने में मदद करता है। इस परियोजना के माध्यम से, एम्स जोधपुर परिसर में आने वाले सभी कैंसर रोगियों को समर्पित पोषण विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक, फिजियोथेरेपिस्ट और पेलिएटिव काउंसलर्स से परामर्श प्राप्त होगा। इस तरह रोगियों के उपचार और उनके समग्र जीवन की गुणवत्ता में सुधार संभव हो सकेगा।
एस्ट्राजेनेका इंडिया के वीपी मेडिकल अफेयर्स एंड रेगुलेटरी डॉ अनिल कुकरेजा ने कहा, ‘‘हमारे देश में, जहां कैंसर रोगियों की संख्या बहुत अधिक है, वहां औसतन लगभग 40 प्रतिशत रोगी ऐसे भी हैं जो बीच में उपचार छोड़ देते हैं। उपचार जारी रखने के लिए मरीजों को कॉम्प्रीहेसिव पेलिएटिव, पोषण, पुनर्वास और मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता होती है। लाइव सीओई के माध्यम से देखभाल का यह मॉडल देश का पहला और एक अच्छा मॉडल है, जिसे जोधपुर में लॉन्च होने के पिछले छह महीनों में महत्वपूर्ण सफलता मिली है, जहां 50 प्रतिशत की विजिट रेट के साथ लगभग 6000 परामर्श सत्र आयोजित किए गए हैं। हमने इस सफलता के आधार पर एक मॉडल ढांचा तैयार किया है जिसे अन्य गैर-संचारी रोगों के मामलों में भी दोहराया जा सकता है और पूरे क्षेत्र में कई रोगियों को लाभ हो सकता है। बदलते सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल परिदृश्य के एक हिस्से के रूप में, यह आवश्यक है कि नर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ता कौशल हासिल करने और अप-टू-डेट रोगी केंद्रित देखभाल का अभ्यास करने के लिए विकसित स्वास्थ्य आवश्यकताओं, नीतियों, टैक्नोलॉजी और ज्ञान को अपनाएं। नर्सों को कुशल बनाना इस मॉडल का एक प्रमुख पहलू है, जो विशेष रूप से गैर-संचारी रोगों के खिलाफ लड़ाई में किफायती, मानकीकृत और सुरक्षित आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को सुनिश्चित करने में एक वरदान साबित हो सकता है।’’
महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों पर स्वीडिश ट्रिपल हेलिक्स मॉडल में काम करने के महत्व के बारे में बताते हुए, भारत में स्वीडिश ट्रेड कमिश्नर सेसिलिया ऑस्करसन ने कहा, ‘‘हम इन दो महत्वपूर्ण पहलों की शुरुआती सफलता को देखकर खुश हैं, जो लोगों की क्षमताओं को प्रभावित करने और हमारे मौजूदा हेल्थकेयर इकोसिस्टम को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इन कार्यक्रमों को सरकार और प्रमुख उद्योग संगठनों की ओर से समर्थन मिले, इस दिशा में हम प्रभावी तरीके से काम करते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के कार्यक्रम को लागू करने में सक्षम होने और व्यापक उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिहाज से यह सपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि समस्त रोगियों को लाभ पहुंचाया जा सके और इस तरह स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले बोझ को कम किया जा सकेगा। हम दोनों देशों के बीच इन क्रॉस लर्निंग कार्यक्रमों को विकसित करना जारी रखेंगे, ताकि गैर-संचारी रोगों के मैनेजमेंट को और बेहतर बनाया जा सके और रोगियों को लाभान्वित किया जा सके।’’
प्रो सुरेश के शर्मा, प्रोफेसर और प्रिंसिपल, कॉलेज ऑफ नर्सिंग, एम्स जोधपुर के नेतृत्व में गठित एक सलाहकार समिति के निर्देशन में यह पहल जारी रहेगी। सलाहकार समिति में एम्स दिल्ली, एम्स जोधपुर, डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ हेल्थ साइंसेज (डीजीएचएस), इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर), यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (यूसीएमएस), इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी), एस्ट्राजेनेका इंडिया और बिजनेस स्वीडन के प्रमुख लोग शामिल हैं। यह समिति इस दिशा में कार्रवाई की एक संपूर्ण रूपरेखा बनाने और समीक्षा करने, समग्र ढांचे को नियंत्रित करने, पहल की योजना बनाने और इसके प्रभावी संचालन, परियोजना के निरंतर मूल्यांकन और देशभर में इसी तरह के संभावित मॉडल के विकास का जिम्मा संभालेगी।

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