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फतहनगर - सनवाड

कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थापत्य कला से 1443 में महाराणा ने बनवाया गणेशजी का मंदिर

फतहनगर। ऐतिहासिक कुंभलगढ़ दुर्ग पर स्थापत्य कला से तैयार मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है। हालांकि यह मंदिर पूरे साल बंद ही रहता है, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन फतहनगर से सोनी परिवार यहां कई सालों से आकर पूजा करते है। हेरिटेज सोसायटी के सचिव और शिक्षाविद कुबेरसिंह सोलंकी के अनुसार 1443 ईस्वी में महाराणा कुंभा ने मंडोर विजय किया था।
इसके बाद महाराणा यह गणेश प्रतिमा कुंभलगढ़ दुर्ग लेकर आए थे। सोलंकी ने बताया कि किले में यह मंदिर गेट के अंदर पहुंचते ही मुख्य दुर्ग के पास है। मूर्ति की लंबाई करीब साढ़े 3 फीट है। खास बात यह है कि मूर्ति को दक्षिण मुखी में स्थापित किया है, ताकि कोई विघ्न ना हो। मूर्ति में खास बात यह है कि जो प्रतिमा है उनमें गणेशजी के हाथ में ही एक गणेशजी भगवान की छोटी प्रतिमा भी है। पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाले इस मंदिर के यहां काम करने वाले कर्मचारी यहां की साफ-सफाई की व्यवस्था देखते हैं।
35 साल से फतहनगर का सोनी परिवार दुर्ग स्थित मंदिर में गणेश चतुर्थी पर करता है पूजा-अर्चनाः
फतहनगर के रहने वाले गणपतलाल स्वर्णकार यहां पिछले 4 दशक से आकर पूजा करते है। वे यहां पर हर साल गणेश चतुर्थी पर प्रसादी करते है और विशेष पूजा भी करने आते है। इन्होंने यहां पूजा करने के साथ ही अपने कस्बे फतहनगर में भी कुंभलगढ़ दरबार के नाम से गणेश भगवान का मंदिर तैयार करवाया है, जहां हर रोज गांव वाले आकर पूजा करते है।

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