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फतहनगर। फतहनगर में आयोजित नानीबाई को मायरे की शुरूआत मण्डोवरा परिवार द्वारा पोथी पूजन के साथ धर्मप्रेमियों को कृष्ण भक्त और महाराज श्री दर्शनाचार्य दिग्विजय बालपीठाधीशराज जी के मुखारविन्द से प्रारम्भ हुई। नानीबाई को मायरो कथा का परिचय व नरसी मेहता का कृष्ण प्रेम का व्याख्यान किया गया। कथा कृष्ण भक्ति से सरोबार संगीतमय भजनो से धर्मप्रेमियों को कृष्ण की भक्ति से ओत प्रोत कर दिया एवं कथा स्थल का मुख्य आकर्षण सांवरियां सेठ (मण्डपियां धाम) का विराजमान होना रहा। इसमें आयोजक प्रहलाद मण्डोवरा द्वारा सांवरियां सेठ का स्वागत एवं महाआरती की गई। तत्पश्चात् महाराज के श्रीमुख से कथावाचन में विश्वास शब्द को लेकर संदेश दिया कि यह नानीबाई का मायरा कलयुग का एक विश्वास है, जिसमें साक्षात् भगवान कृष्ण उपस्थित होकर मायरा भरते है। एक अथक विश्वास की कथा का आधार हैं, हमें दर्शन कही भी किसी भी रूप में मिल सकते हैं। इसलिए बार बार गुरूदेव ने विश्वास को बडा बताया है। कृष्ण के परम भक्त थे नरसी – जन्म से गुंगे बहरे कृष्ण के परमभक्त नरसी मेहता पर शिव कृपा इस प्रकार बरसती है कि वह बोलने व सुनने लगते हैं। घर की प्रताडना को लेकर वह शिव भक्ति में लीन हो जाते हैं। शिव नरसी की भक्ति से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो उन्होने कहा कि मुझे ओर कुछ नही चाहिए, सिर्फ राधा कृष्ण मिलाइये। कहते है कि कृष्ण को पाना है तो उनकी गोपी बन जाओ। भगवान श्री कृष्ण भाव के भुखे हैं। यह भाव सिर्फ नरसी जी में था। जब भोले भण्डारी महिला की पोशाक पहनकर पार्वती के संग रास रचाने लगते है, तो कृष्ण उनको पहचान जाते है, तब महादेव कहते है कि मैं भी कृष्ण की रासलीला में आना चाहता हुं और कृष्ण संग नाचना चाहता हुं। गोपियों के साथ देवों के देव और कैलाश पर्वत के राजा महादेव और गोकुल के राजा कृष्ण ने रास खेला व सुन्दर झांकियों का दृश्य देखकर नगरवासी कृष्ण भजनों पर खुब नाचे और पुरा पांडाल कृष्णमयी हो गया।