निर्वाचक नामावली को आधार संख्या से जोड़ने से खत्म होगा फर्जीवाड़ा
– (सी. पी.जोशी ) ।
निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 संसद के दोनों सदनों से पास हो गया और अब सिर्फ महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी के हस्ताक्षर का इंतजार है। इस विधेयक के द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किए गए हैं। दोनों अधिनियमों में कुल मिलाकर छ: संशोधन हुए। जिस संशोधन को लेकर विपक्ष ने संसद के भीतर और बाहर अवांछित हंगामा मचाया, वो है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23। संशोधन के अनुसार निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी किसी वोटर की पहचान स्थापित करने के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी आधार संख्या की मांग कर सकता है। इसका एक नेक उद्देश्य है और वो है निर्वाचक नामावली की सफाई। विधेयक में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि “निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी निर्वाचक नियमावली में प्रविष्टियों के अधिप्रमाणन के प्रयोजन के लिए और एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों या उसी निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक बार निर्वाचक नामावली में उसी व्यक्ति के नाम के रजिस्ट्रीकरण की पहचान करने के लिए निर्वाचक नामावली में पहले से ही सम्मिलित व्यक्तियों की आधार संख्या की अपेक्षा कर सकेगा”। आधार संख्या की मांग किसी गलत कार्य के लिए नहीं की जा रही है।
देश में ऐसे लाखों वोटर हैं जिनके नाम एक से अधिक निर्वाचक नामावली में है, जो कि नियमों के विरुद्ध है। आधार संख्या के जुड़ जाने से निर्वाचक नामावली की सफाई होगी। कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 105वीं रिपोर्ट में कहा था कि आधार संख्या को मतदाता सूची से जोड़ने से मतदाता सूची शुद्ध होगी और इसके परिणामस्वरूप चुनावी कदाचार कम होगा। भारत निर्वाचन आयोग भी निर्वाचक नामावली को आधार संख्या से जोड़ने के पक्ष में है। वर्ष 2019 में निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में विधि मंत्रालय से संपर्क भी किया था।
फर्जी वोटरों से देश की चुनाव प्रणाली प्रभावित होती है। हमारा संविधान “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव” की बात करता है। यदि एक व्यक्ति का नाम एक या अधिक निर्वाचक नामावली में है और वह एक से अधिक बार मतदान करता है तो उस चुनाव को निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता। संविधान में “समता का अधिकार” का जिक्र है और सभी को एक मत का ही अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक बार मत डालता है तो यह संविधान का उल्लंघन है।
विधेयक में यह भी साफ-साफ लिखा हुआ है कि निर्वाचक नामावली में नाम को सम्मिलित करने के लिए किसी आवेदन से इंकार नहीं किया जायेगा। जिनके पास आधार संख्या नहीं है वे अन्य वैकल्पिक दस्तावेज पेश कर सकते हैं। इसके बाद भी विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
जहाँ तक सवाल उच्चतम न्यायालय के पुट्टास्वामी मामले में दिए गए फैसले का है तो यह कदम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ा उतरता है। निर्वाचक नामावली को आधार संख्या से जोड़ने से देश के संसाधन की बचत होगी। इसके अलावा, देश में ऐसे करोड़ों प्रवासी कर्मी हैं जो अपने घर से दूर दूसरे राज्यों में कार्य और निवास करते हैं। इस कारण वे अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते। यदि निर्वाचक नामावली से आधार को जोड़ा जाता है तो आने वाले समय में तकनीक का उपयोग कर प्रवासी कर्मी देश के किसी भी हिस्से से मतदान कर पाएंगे।
साथ ही संशोधन के माध्यम से “पत्नी” शब्द के स्थान पर “पति या पत्नी” शब्द को प्रतिस्थापित किया गया है। यह बदलाव लिंग निष्पक्षता की ओर सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पहले, निर्वाचक नामावली में नाम जुड़वाने की अहर्ता की तारीख 1 जनवरी थी। इससे, बड़ी संख्या में युवा निर्वाचक नामावली में अपना नाम नहीं जुड़वा पाते थे और मताधिकार से वंचित रह जाते थे। अब 1 जनवरी के अलावा अहर्ता की तारीख को 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर कर दिया गया है। इससे, युवा 18 वर्ष की आयु पूरा करते ही अपना नाम जल्द निर्वाचक नामावली में जुड़वा सकेंगे।
(लेखक चित्त्तौड़गढ़ लोक सभा क्षेत्र से संसद सदस्य हैं। )