(शंकरलाल चावड़ा)
फतहनगर। रियासतकालीन परम्पराओं की याद दिलाती बादशाह की सवारी के आयोजन का लुत्फ उठाने को हर कोई बेताब रहता है। क्या बच्चे और क्या युवा हर कोई इसका इंतजार ही करता नजर आता है। सनवाड़ की बादशाह की सवारी इस क्षेत्र में खासी प्रसिद्ध है। होलिका दहन के बाद से ही लोग इसके आने का दिन गिनना शुरू कर देते हैं। बादशाह की सवारी का आयोजन शीतला सप्तमी के अवसर पर होता है। सोमवार को शीतला सप्तमी है तथा बादशाह की सवारी के आयोजन को लेकर नगर के युवा काफी उत्साही दिखाई देते हैं। दिन भर रंगों से होली खेलने के बाद शाम को इसका आयोजन बड़े ठाठ के साथ के साथ किया जाता है। इस आयोजन के पीछे किंवदंती है कि बादशाह की सेना मेवाड़ पर आक्रमण कर देती है और मेवाड़ के महाराणा की सेना कम तादाद में होकर छापामार पद्धति से युद्ध करती है। छापामार युद्ध का सामना करते हुए बादशाह की सेना महाराणा के महल के पास पहुंच जाती है जहां दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध होता है। यहां बादशाह की सेना तितर-बितर हो जाती है तथा बादशाह की दाढ़ी नोंच ली जाती है। बादशाह को बंदी बनाकर महाराणा के समक्ष पेश किया जाता है। महाराणा के दरबार में इस खुशी पर गैर नृत्य का आयोजन एवं खुशी का इजहार होता है। इसी क्रम में सनवाड़ का यह आयोजन वर्षों से चल रहा है। इस आयोजन के प्रति आज भी लोगों का खासा क्रेज है। नगरवासी बड़े ही संयमित,संगठित एवं शांतिपूर्ण तरीके से इस आयोजन को मनाते हैं।