मैं बड़ा हो गया हूं। मैं सब समझता हूं तथा निर्णय लेने की क्षमता रखता हूं। इस प्रकार की सोच रखने वाला अनुभव में माता-पिता से बड़ा नहीं हो सकता।
जी हां। अतीत में झांके तो पता लगेगा कि बालक के वैवाहिक जीवन का निर्णय माता-पिता ही किया करते थे। उसके वैवाहिक जीवन को लेकर मां-बाप की सोच के आगे आज बालक की सोच अलग हो गयी है। माता-पिता क्या समझते हैं। बालक मां-बाप को इस मामले में अपने से बौना समझने लगा है। जिन मां बाप के हाथों में पला बढ़ा उन्हीं को अपने से कमत्तर आंकने लगा है। जो युवा भावनाओं में बहकर अपनी मर्जी का मालिक बनकर जीवन साथी चयन करता है उसके जीवन में सफलता की कोई गारंटी नहीं होती। मां-बाप प्रत्येक दृष्टि से सोच विचार के बाद बालक के वैवाहिक जीवन का निर्णय लेते हैं। मां-बाप का सपना यही होता है कि मेरी औलाद सुखी रहे तथा जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आवे। वे अपने जीवन का सारा श्रम,सारा सुख अपने बच्चों के सुख के लिए लगा देते हैं। उनके त्याग को अपने लिए बौना समझने लगा है आज का युवा। मनमर्जी का मालिक बनना कुछ समय के लिए उसे सुख दे सकता है लेकिन ध्यान रहे मां-बाप के त्याग को नहीं भूलना चाहिए। आज का युवा बड़ा होने के बाद उनके त्याग को तुच्छ समझ कर अपने निर्णय थोपने का प्रयास करने लगा है। माता-पिता बालक के हित चिंतक है न कि उनके दुश्मन। वे नहीं चाहते कि बालक का जीवन खराब हो। वे चाहते हैं कि हर दृष्टि से बालक के लिए अच्छा करें। मां-बाप की इच्छाओं का कभी गला घोंटने का प्रयास नहीं करें। मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्री राम ने माता-पिता की आज्ञाओं का पालन कर संसार को एक सीख दी जिसे आज का युवा भूलता जा रहा है। यह भी याद रखें कि आपके सारे सुख मां-बाप के आगे बौने हैं। उनके मन को दुःखी कर स्वयं निर्णय लेने का प्रयास न करें। जिस कार्य में मां-बाप राजी हो उसे ही वरीयता दें तो आपके जीवन में खुशहाली रहेगी। माता-पिता का आशीर्वाद आपको फलीभूत करेगा। उनके मन को दुःखी करना परमात्मा को कष्ट पहुंचाने जैसा है। वैवाहिक जीवन के मामले में अपने निर्णय माता-पिता पर थोपने की चेष्टा न करें।
फतहनगर - सनवाड