फतहनगर. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कृषि बिल 2020 में कई किसान हितैषी निर्णय लिए है। उक्त बात सांसद सी.पी.जोशी ने शनिवार को सोशल मीडिया पर फेसबुक लाईव के माध्यम से हजारों किसानों से बातचीत के दौरान कहीं।
सांसद जोशी ने कहा कि वर्तमान में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विगत 6 वर्षो से किसानों के हितों व उनके अधिकारों को ध्यान में रखकर योजनाओं, नीतियों का निर्माण कर रहे हैं, उनका मूल ध्यान गांव, गरीब, तथा किसान के विकास पर हैं व इनका वर्तमान में लाये गये संसद में कानुन जिसका ध्येय रहा हैं ’’ स्वतंत्र किसान, सषक्त किसान’’। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प किसानों के आय का दुगुना करने का रहा हैं जिस पर आज भारत सरकार, कृषि मंत्रालय एवं कृषि वैज्ञानिक वह कार्य कर रहे है।वर्तमान में संसद के द्वारा किसानों के हितों में दो कानुनों को पारित किया गया हैं। ये कानुन कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तनों का आधार बनेगें ।
सांसद जोशी ने कहा कि
जब से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आयी हैं किसानों के विकास पर अत्यन्त ध्यान दिया गया हैं वर्ष 2009-10 में जब यूपीए की सरकार थी तब कृषि मंत्रालय का बजट 12 हजार करोड़ रूपये होता था लेकिन आज मोदी जी की सरकार में यह बजट 1 लाख 34 हजार करोड़ रूपये हो गया है।
विगत वर्षो में सरकार का प्रयास रहा की कृषि में बुवाई का रकबा बढे, जैविक खेती का रकबा बढे, उत्पादन बढे, उत्पादकता बढे, उपार्जन बढे और इसी दिशा में यह सरकार लगातार सफलतम प्रयास कर रही है। इस कानुनों से निष्चित तौर पर जो किसान विगत 70 वर्षो से बिचैलियों के चंगुल में थे, उनको अपनी उपज को बेजे जाने की स्वतन्त्रता के साथ ही इस प्रकार के बिचैलियों के चगंुल से मुक्ति दिलाता है।
यदि हम पहले की बात करें तो किसानों का बाजार केवल स्थानिय मंडी तक ही सीमित था, किसान अपने खेतों में चाहे जितनी फसल का उत्पादन कर दे लेकिन उसकी फसल के खरीददार सीमीत संख्या में थे, किसान की फसल के बाजार का दायरा बहुत ही सीमीत था। मंडीयों में बुनियादी ढांचे की कमी होने से किसान की फसल खुले आसमान के नीचे निलामी की इन्तजार करती थी। मूल्यों में कोई पारदर्षिता नही थी। इसके साथ ही अधिक परिवहन की लागत, लंबी कतारों में इन्तजार, नीलामी में देरी और स्थानीय माफीयाओं की मार झेलनी पड़ती थी।
देश के प्रधानमंत्री ने किसानों की इस समस्या को समझा क्योंकी यह आमतौर पर समझा जाता हैं की किसान की समस्याऐं उसके फसल उगाने से लेकर फसल काटने तक ही होती हैं, लेकिन फसल को काटने व निकालने के बाद उस फसल के बेचान तक भी किसानों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन संसद में पारित इन विधेयकोें से कृषि के क्षेत्र में आमूलचुक परिवर्तन आयेगा तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी, कृषि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मजबुत होने से देष की आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी। किसानों का ’’एक देष-एक बाजार’’ का सपना भी पुरा होगा।
विधेयक
कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020।
कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020।
ये विधेयक राज्यों की अधिसूचित मंडियों के अतिरिक्त राज्य के भीतर एवं राज्य से बाहर देष के किसी भी स्थान पर किसानों कोे अपनी उपज को निर्बाध रूप से बेचने की व्यवस्था एवं अवसर प्रदान करता है।
इससे किसान अपनी फसल का सौदा सिर्फ अपने ही नही बल्कि दुसरे राज्य के लाईसेंसी व्यापारियों के साथ भी कर सकते है। इससे बाजार में प्रतिस्र्पधा होगी और किसानों को अपनी फसल के भरपुर दाम मिलेंगे।
किसानों को अपने उत्पाद के लिये किसी प्रकार का कोई उपकर नही देना पड़ेगा तथा माल ढुलाई के लिये भी कोई अन्य खर्च वहन नही करना पड़ेगा।
ये विधेयक किसानों को ई-ट्रेडिगं का मंच उपलब्ध कराता है, जिसमें इलेक्ट्रोनिक माध्यम से निर्बाध व्यापार सुनिष्चित किया जा सकेगा।
किसान अपनी फसल के खरीददार से सीधे जुड सकेंगे जिससे बिचैलियों को मिलने वाला लाभ सीधा किसानों कोे मिलेगा तथा उनको उनके उत्पाद की पुरी कीमत मिलेगी।
इसमें किसान की पंहुच अत्याधुनिक कृषि प्राद्योगिकी, उन्नत बीज एवं आधुनिक कृषि उपकरणों तक होगी।
किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में उसका निबटारा 30 दिन के भीतर स्थानिय स्तर पर किये जाने का प्रावधान है। विवाद का सुलझारा एस.डी.एम स्तर पर किया जायेगा।
ये विधेयक किसान को तीन दिवस के अन्दर भुगतान की गांरटी प्रदान करवाता है।
फसल उत्पादन के दौरान फसल पर किसान का मालिकाना हक बना रहेगा एवं फसल का बीमा कराया जायेगा तथा आवश्यकता होने पर किसान वित्तिय संस्थानों से ़ऋण भी ले सकेंगे।
कान्ट्रेक्ट फार्मिंग के दौरान फसल का मूल्य पहले से ही तय कर लिया जायेगा यदि किसी भी कारण से फसल में उतनी पैदावार नही भी हो पाती हैं तो किसान को पहले से तह पुरा पैसा मिलेगा यानि यह एक तरह से रिस्क का ट्रान्सफर है।
यदि किसी कारण से तय कीमत से यदि फसल की कीमत में वृद्धि हो जाती हैं तो उसका कुछ भाग किसान को भी मिलेगा।
इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ जायेगी जिससे व्यापारियों की संख्या में वृद्धि हो जायेगी इससे रोजगार बढेगा, व्यापार में पारदर्शिता आयेगी, रिश्वतखोरी व कमीशनखोरी घटेगी, इन्सपेक्टर राज का खात्मा होगा, लेकिन सबसे महत्वपुर्ण हैं की बिचैलियों से मुक्ति मिलेगी।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का जिस प्रकार का स्वाभाव हैं की चाहे किसी भी योजना की कोई राशि किसी पात्र तक पंहुचाये वो सीधे पात्र तक बगैर की छिजत के पंहुचती हैं एकदम पारदर्शी तरीके से चाहे वो गैस की सब्सिडी हो या चाहे किसान सम्मान निधि में आने वाली किश्त हो या फसल बीमा के पैसे हो या मनरेगा की मजदुरी हो आज दावे के साथ कह सकते हैं की वो सौ भेजते हैं तो सौ के सौ आते है।
यहाॅ पर इस बिल के संबध में सबसे महत्पपुर्ण विषय पर चर्चा किया जाना आवश्यक हैं की आखिर किस तरह से विपक्ष किसानों को इस बिल संबध मंे भ्रमित कर रहा है।
इस देश में जिस राजनैतिक दल ने दशकों तक इस देश पर शासन किया उसने हमेशा किसान को अध्ंाकार में और गरीबी की रेखा में रखा हो, उस दल को यह बदलाव अच्छा नही लग रहा है। ये संसद से सड़त तक इसका विरोध कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जिनके शासन में किसानों ही हालत बद से बदतर होती चली गयी थी।
विपक्ष द्वारा कहा जा रहा हैं की इस बिल के कारण न्यूनतम सर्मथन मूल्य पर अनाज की खरीद बन्द हो जायेगी, जबकी हकीकत में यह केवल विपक्ष के द्वारा फैलाया जा रहा भ्रम हैं स्वयं देश के प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री ने भी स्पस्ट किया हैं की किसी प्रकार की कोई एम.एस.पी. खत्म नही की जा रही हैं वह जारी हैं तथा जारी रहेगी।
यह भी भ्रम फैलाया जा रहा हैं की इस बिल के आने से मंडिया समाप्त हो जायेगी जबकी सच्चाई ये हैं की मंडिया समाप्त नही होगी, वहाॅ पुर्ववत व्यापार होता रहेगा। किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी उपज को बेचने का विकल्प प्राप्त हो जायेगा।
इसके साथ ही छोटे किसानों की कांट्रेक्ट फार्मीगं को लेकर शंका हैं उसके लिये भी देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समुह यानि एफ.पी.ओ. निर्मित किये जा रहे हैं। कांट्रेक्ट केवल उत्पाद पर ही होगा जमीन पर कृषक का ही मालिकाना हब बना रहेगा।
स्वयं लोकसभा चुनाव 2019 के विपक्ष के घोषणा पत्र में ये बिन्दु थे की मंडी समिति अधिनियम में संशोधन कर अन्र्तराज्यीय व्यापार पर लगा प्रतिबंध समाप्त होना चाहिये। बडे गांव कस्बों में किसान बाजार की स्थापना होनी चाहिये जहाॅ किसान अपनी उपज अपनी ईच्छा से बेच सके। यहाॅ तक की यूपीए की सरकार ने वर्ष 2007 में माडल ए.पी.एम.सी. नियम तैयार किया था एवं उसको राज्यों को लाघु करने का कहा था जिसमें निजी मंडिया, प्रत्यक्ष विपणन, संविदा खेती आदि शामिल है। संविदा खेती हेतु भी कांगे्रस के शासनकाल में राज्यों में प्रावधान शामिल किये गये थे जैसे हरियाणा-2007 सहित कुल 19 राज्यों ने प्रावधान किये।
लेकिन फिर भी विपक्ष क्यों इस बिल का विरोध कर रहा हैं जनता को यह प्रश्न उनसे करना चाहिये।
स्वंय देश के प्रधानमंत्री ने कहा हैं की 21वीं सदी में भारत का किसान बंधनों में नही, खुलकर खेती करेगा। 21वीं सदी में किसान जहाॅ मन किया वहाॅ फसल बेचेगा और जहाॅ पर ज्यादा पैसा मिले वहाॅ पर फसल बेचेगा।
यदि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की बात करें तो उनके नेतृत्व में एन.डी.ए. की सरकार के द्वारा कृषि क्षेत्र में अनेकों महत्वपुर्ण कदम उठाये गये है।
इन विधेयकों को बनाने से पहले स्वामीनाथन कमेटी की सिफारीशों का भी ध्यान रखा गया हैं जो की इस विधेयक में शामिल की गयी हैं। वर्ष 2004 में तत्कालित सरकार नें एक राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था, तथा हरित क्रान्ति के जनक एवं कृषि वैज्ञानिक डा. स्वामीनाथन को उस राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था, उन्होने 2006 में अपनी रिपोर्ट सबमिट की थी जिसमें कुछ महत्वपुर्ण बातें थी की किसानों को एम.एस.पी. पर उपार्जन की राशि सीधे किसानें के खातों में मिलनी चाहिये तथा इसकी निश्चित समय सीमा में आॅडीट होनी चाहिये। अनाज एवं व्यावसायिक फसलांे पर अप्रत्याक्षित करों में रिव्यु होना चाहिये। मंडी टैक्स एवं सर्विस चार्ज नही लिया जाना चाहिये। फसलों को बेचने के लिये एक राष्ट्रीय बाजार होना चाहिये। संविदा के माध्यम से मार्केट स्थापित होने चाहिये। ये सभी स्वामीनाथन आयोग की सिफारीशों में था जिसके इस सरकार ने लाघु किया है।
इसके साथ ही फसलों के एम.एस.पी. निर्धारण में भी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का ध्यान रखा गया है।
वर्ष 2006 से वर्ष 2014 तक स्वामीनाथन की रिपोर्टस क्यों ठंडे बस्ते में रखी गयी थी इसका भी जवाब विपक्ष को देना चाहिये की क्यों उन्होने किसानों के हितों के विषय में उदासिन बन उनके विकास की राह में रोड़ा बने।
एम.एस.पी. न्यूनतम सर्मथन मूल्य को लागत का कम से कम डेढ़ गुना किया गया यानि की कम से कम 50 प्रतिशन का मुनाफा जोडकर एम.एस.पी. का निर्धारण किया गया।
काॅरोना में गेंहु का उपार्जन डेढ़ गुना एवं दलहन एवं तिलहन का उपार्जन केन्द्रों को तीन गुना बढाया गया।
आत्मनिर्भर भारत योजना में कृषि अवसंरचना फंड के रूप में 1 लाख करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया।
काॅरोना काल में 5 किग्रा निःशुल्क अनाज गेंहु अथवा चावल प्रति युनिट प्रदान कराया गया।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में अब तक 10 करोड़ किसान लाभान्वित हुये तथा कुल 93 हजार करोड़ राशि किसानों के खातों में सीधे हस्तान्तिरीत की गयी।
काॅविड में पी.एम.किसान में लगभग 9 करोड किसानों को 38 हजार करोड़ रूपये जारी किये गये।
किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ मछलीपालकों एवं पशुपालकों लिये भी किया गया।
ई-नाम मंडियों को 585 से बढाकर 1000 कर दिया तथा इस पर अब तक 1 लाख करोड का व्यापार किया गया है। इस एक्ट के बाद अब हर जिले हर ब्लाक में ई-नाम मंडियों के प्लेटफार्म स्थापित हो जायेंगे।
देश में 10 हजार एफ0पी0ओ0 जिस पर 6850 करोड़ रू खर्च किये जाने है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत विगत 4 वर्षो में किसानों ने प्रिमियम के रूप में 17 हजार 500 करोड़ रू जमा किये तथा उनको 77 हजार करोड़ रूपये का दावों के अनुरूप भुगतान किया गया।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को स्वैच्छिक किया गया।
उपज को एक स्थान से दुसरे स्थान पर आसानी से ले जाने के लिये किसान-रेल प्रारंभ की गयी, किसान-उडान भी जल्द प्रारंभ की जायेगी।
रबी फसलों की एम.एस.पी. भी जल्द घोषित हो जायेगी।
किसानों के लिये सोईल हेल्थ कार्ड योजना शुरू की।
फसल खराबे पर मुआवजे की सीमा को 50 प्रतिशत से घटाकर 33 प्रतिशत किया।
काॅरोना काल में देश में 20 लाख करोड़ का बजट दिया गया जिसमें से 1 लाख 65 हजार करोड़ का बजट कृषि के लिये था। जिसमें से 1 लाख करोड़ का बजट कृषि क्षेत्र में उपज के भण्डारण, स्टोरेज एवं बुनियादी ढांचे के विकास के लिये था।
समर्थन मुल्यों की बात करें तो
गेंहु का वर्ष 2013-14 में 1400 रू जो की 2020-21 में 1975 हो गया।
गेंहु खरीद की बात करें तो 2009 से 2014 के बीच 1395 लाख मीट्रीक टन गेहुं की खरीद की गयी जिस पर 1 लाख 68 हजार करोड़ रूपयों का व्यय हुआ व 2014 से 2019 के बीच 1457 लाख मीट्रीक टन गेंहु की खरीद की गयी जिस पर 2 लाख 27 हजार करोड़ रू खर्च हुये।
जौ का वर्ष 2013-14 में 1100 रू जो की 2020-21 में 1600 हो गया।
चना का वर्ष 2013-14 में 3100 रू जो की 2020-21 में 5100 हो गया।
मसुर का वर्ष 2013-14 में 2950 रू जो की 2020-21 में 5100 हो गया।
सरसों का वर्ष 2013-14 में 3050 रू जो की 2020-21 में 4650 हो गया।
मुंगफली का वर्ष 2013-14 में 4000 रू जो की 2020-21 में 5275 हो गया।