– श्रीकृष्ण जुगनू –
एक ऐसा दुर्ग जिसके नाम का जयकारा लगाया जाता है : जय चित्तौड़! गढ़ नाम आते ही चित्तौड़ का स्मरण होता है! वीरों और वीरांगनाओं ने यहां जैसे आदर्श रचे, वे चित्र और विचित्र हैं। “शिवपुराण” में इस के लिए कहा गया है कि यह कैसा विचित्र दुर्ग है जहां स्त्रियां अग्नि स्नान करती हैं!
अचरच की बात है !
यहां का अधिकांश घटनाक्रम अभिलेखों में मिल जाता है, कहीं अटकल लगाने की जरूरत नहीं। यहां लगभग सौ अभिलेख हैं, इतने ही स्मारक और जलस्रोत! कहने के लिए करोड़ों कंठ, सुनने के लिए सहस्रों कान, देखने के लिए अनंत आंखें… हाल के कवियों ने तीर्थराज कहा, कल के कवियों ने क्षितितल का मुकुट माना! संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ही नहीं, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन जैसी अनेक भाषाओं में चित्तौड़ के विषय में लिखा गया है। मेरी प्रिय जन्मभूमि! इतना लगाव है कि मुझे समझ में आता है कि क्यों वीरों ने जीते जी इसको शत्रुओं को नहीं सौंपा! कितने राजवंशों का इस पर प्रभुत्व रहा! कितने निर्वंश हो गए!
कोई दस साल पहले राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर के संचालक भाई श्रीराजेंद्रजी सिंघवी ने एक पुस्तक के प्रूफ मुझे भेजकर कहा कि साठ के दशक में श्रीसोमानीजी ने इसको लिखकर छापा था। आप इसको देखें और ऐसा कुछ कर दें कि यह पुस्तक लघु गाइड से इतिहास जैसी लगे। यही मंशा आदरणीय सोमानी जी की थी। मैं पढ़ता गया और सुधारता तथा जोड़ता गया। सवा दो सौ पन्ने हो गए। भला इतना कौन जोड़ेगा और कौन संशोधन करेगा, आजकल के टाइप सेटर ऐसा काम नहीं करते। किताब कई हाथों में गई। कोई हारे, कोई छोड़ भागे, हर प्रूफ ने किताब को विस्तार ही दिया… मैं अब भी मान रहा हूं कि चित्तौड़गढ़ के अभिलेख, चित्तौड़गढ़ के जलस्रोत, चित्तौड़गढ़ का स्थापत्य, चित्तौड़ की मूर्तिकला जैसे अनेक विषयों पर शोध प्रबंध खड़े किए जा सकते हैं। दर्जनों किताबें तो मेरे पास है ही।
खैर, पुस्तक आई है : चित्तौड़गढ़ का इतिहास। बहुत ठोक बजाकर तैयार की है! यह किसी पुस्तक का वैसा पुनर्जन्म है जैसा कि पूर्वज अपने ही कुल में फिर से जन्म की कामना करते हैं। इसके मूल लेखक श्री सोमानी जी, आदरणीय सिंघवी जी स्मृति शेष हो गए… दोनों को नमन। इसमें लगभग तीन सौ पुस्तकों, शोध प्रबंधों, अभिलेखों की सहायता रही। किला वही, कल वही, कला वही लेकिन ज्यादातर सूचनाएं नई हैं। इस पुस्तक को पढ़कर देश के हर किले का इतिहास लिखने की प्रेरणा मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। कवरपेज प्रियवर श्री अनुराग मेहता ने तैयार किया और चित्र श्रीशरद व्यास ने जुटाए हैं।