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फतहनगर - सनवाड

जीव का कल्याण गुरुकृपा से ही सम्भवः कृष्णकिंकरजी महाराज

फतहनगर। स्मृतिशेष श्रीमती विजयलक्ष्मी वैष्णव की स्मृति में फतहनगर की चंगेड़ी रोड़ पर श्री कृष्ण महावीर गौशाला परिसर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन कथा मर्मज्ञ पं.कृष्णकिंकरजी महाराज ने कहा कि जीव का कल्याण गुरुकृपा से ही सम्भव है।
कथा के तीसरे दिन रन्तिदेव कथा, मीराबाई की हृदय विदारक कथा के साथ कहा कि जीव का कल्याण गुरुकृपा से ही सम्भव है। नारदजी ने दुष्ट हिरणाकश्यप की जय इसीलिए बोली की यहीँ भक्त प्रह्लाद आने वाले हैं। कलियुग में केवल नामस्मरण से मोक्ष प्राप्त हो सकता है। पेड़ की जड़े जितनी गहरी होती है उतनी ही उसकी उम्र लम्बी होती है उसी तरह पूण्य की जड़ पाताल में होकर अविनाशी है।
आगे कहा कि जिस तरह घर और बाहर दोनों ओर प्रकाश के लिए दीपक को देहरी में ही रखा जा सकता है उसी तरह सम्पूर्ण देह को प्रकाशित करने के लिए राम नाम रूपी मणि को जीभ रूपी देहरी पर रखना चाहिये।
कलियुग केवल नाम आधारा।
सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा।।
जुआ स्थल, हिंसा स्थल, स्त्रियों के साथ व्याभिचार, शराब खाना एवं अन्याय से उपार्जित सोने में कलियुग के निवास स्थान बताये। राग द्वेष से कुछ नहीं पाया जा सकता है। संसार को देखकर जैसा भाव रखेगा वैसा ही फल मिलेगा। हरिनाम के बाद जिसमे राग द्वेष नहीं है, घर में प्रेम है तो मोक्ष निश्चित रूप से प्राप्त किया जा सकता है।
हमारा न कोई नाम था न है और न आगे होगा। आत्मा अविनाशी है, कपड़ों की तरह देह बदलती रहती है। अतः किसी में आशक्ति नहीं रखते हुए मरने की चिंता नहीं करनी चाहिए। मृत्यु का समय आने पर बिना घबराहट के उसका स्वागत करते हुए तीर्थ या हरि धाम में चले जाना चाहिए। केवल ॐ नाम के उच्चारण मात्र से गोलोकधाम पा जाते हैं। नित्य वासुदेव सर्वम! सबकुछ श्री कृष्ण ही है का सुमिरण करना चाहिए। बिना प्रेम मुक्ति सम्भव नहीं है।
श्री हनुमान जी का गान करते हुए कहा कि श्रीरामजी एवं श्री सीता जी ने स्वयं जिनकी बड़ाई की है वह अजर अमर रहते चहुँओर विद्यमान हैं। आगे कहा कि घर में गीताप्रेस से प्रकाशित रामायण, गीता एव श्रीमद्भागवत ग्रन्थ का विराजित होना ही सर्वफलदायक होकर स्वयं प्रभु स्वरूप ही है।
व्यासपीठ से रामकथा प्रवक्ता मुकेश पालीवाल, पार्षद नारायण मोर एवं आवरीमाता मंदिर विकास कमेटी के नटवर अग्रवाल का सम्मान करते हुए आशीर्वाद प्रदान किया गया। कथा के विश्राम के बाद आरती की गई एवं प्रसाद वितरण किया गया।

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