फतहनगर। मेवाड़ का प्रसिद्ध लोक नाट्य गवरी का ग्राम्यांचल में आगाज हो गया है। ईंटाली में भील समाज के कलाकारों ने गवरी का आगाज किया। गवरी रमने वाले इन कलाकारों ने विधि विधान से गवरी के निमित्त वेशभूषा धारण की। मान्यता के अनुसार सवा माह तक गवरी का अलग-अलग जगह मंचन इन कलाकारों द्वारा किया जाएगा। इस दौरान कलाकार अपने घर नहीं जाते हैं। साथ ही नंगे पैर ही चलते हैं। गवरी के मुख्य किरदार राई एवं राई बुढ़िया जो कि माता पार्वती एवं शिव स्वरूप माने जाते हैं,उपवास रखते हैं। सवा माह तक एक समय ही भोजन करते हैं और जमीन पर ही सोते हैं। गवरी रमने के दौरान ये कलाकार कालू कीर, हथिया डारमा, कान्हा गुजरी,वरजू कंाजरी,मीणा-बंजारा, चौथ माता आदि प्रमुख प्रसंग प्रस्तुत करते हैं। गवरी गांवों के देवस्थानों पर रमी जाती है। ईंटाली में गवरी के मंचन के साथ ही अब यह विभिन्न गांवों में रमी जाएगी। कम नहीं हुआ है गवरी का क्रेजः टी.वी. एवं सोशल मिडिया आने के बावजूद गवरी के प्रति लोगों का क्रेज कम नहीं हुआ है। जहां कहीं गवरी रमी जाती है वहां ग्रामीणों की भीड़ अनायास ही जुट जाती है। लोग कौतूहलपूर्वक गवरी के प्रत्येक प्रसंग को देखते हैं। दिन तो दिन कभी कभी गवरी का मंचन समयाभाव के चलते रात में भी किया जाता है। ईश्वरीय कृपा ही समझें कि दिन में गवरी रमने के बावजूद इन कलाकारों को रात के कार्यक्रम के दौरान थकान का अनुभव नहीं होता। इन कलाकारों का जोश और जज्बा देखते ही बनता है। अपनी वाकपटुता के बल पर ये कलाकार न केवल लोगों को हंसाने का काम करते हैं अपितु इसके जरिए ज्ञानवर्द्धक बाते भी कह जाते हैं।
फतहनगर - सनवाड