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लोकसभा चुनावः राजस्थान में गिरा भाजपा का ग्राफ,आखिर कौन है इसका जिम्मेदार

एनडीए चार सौ पार का नारा इस बार वाकई फुस्स हो गया और भाजपा अकेले दम पर बहुमत का आंकड़ा पार करने में भी सफल नहीं हो पायी। भाजपा अकेले बहुमत के आंकड़े से 32 सीटों से पीछे रह गयी। भाजपा को उत्तरप्रदेश,राजस्थान,पश्चिमी बंगाल,महाराष्ट्र,हरियाणा से अच्छी सीटें आने की उम्मीद थी वहां पर उसे खासा झटका लगा है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस एवं सपा का गठबंधन भाजपा के राम पर भारी पड़ गया। राजस्थान में भाजपा का ग्राफ तेजी के साथ गिरा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। मतदान बाद आए एक्जिट पोल में भी भाजपा की इतनी दुर्गति नहीं दिखी लेकिन परिणाम सामने आते ही भाजपा में अंदरखाने मंथन का दौर शुरू हो चुका है। राजस्थान में जिस प्रकार से भाजपा की स्थिति हुई है उसने केन्द्रीय नेतृत्व को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने वाली भाजपा आखिर इतने कम समय में ही इतनी कमजोर कैसे हो गयी जिससे कि उसे इतनी कम सीटों से ही संतोष करना पड़ गया। जो भी हो प्रदेश भाजपा में ऐसा कोई करिश्माई नेता नहीं था जिसके दम पर भाजपा मतदाताओं को अपनी ओर मोड़ सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भरोसे ही भाजपा ने अपनी वैतरणी पार करनी चाही लेकिन यह संभव नहीं हो सका। प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा मतदाताओं पर अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे। मुख्यमंत्री अपने गृहक्षेत्र में भी पार्टी प्रत्याशियों को लीड नहीं दिलवा सके। प्रदेश की महिला मतदाताओं पर खासा प्रभाव रखने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धराराजे सिंधिया को भाजपा संगठन ने कोई तव्वजो नहीं दी जिसके कारण वसुन्धरा अपने पुत्र दुष्यन्तसिंह के क्षेत्र झालावाड़ को छोड़ कर बाहर नहीं निकली। वसुन्धरा का अपना कद और अपना क्रेज है जिसे नकारा नहीं जा सकता। मेवाड़ में गुलाबचंद कटारिया की कमी के बावजूद भाजपा अपना प्रदर्शन बेहतर ढंग से कर पाने में सफल रही लेकिन वागड़ के आदिवासी क्षेत्र में बांसवाड़ा सीट पर मतदाताओं का मन संगठन नहीं टटोल पाया। आदिवासी महिलाओं के बीच वसुन्धरा खासी लोकप्रिय भी है जहां कांग्रेस से भाजपा में आए महेन्द्रजीतसिंह मालवीय को बीटीपी के राजकुमार रोत से हार का सामना करना पड़ गया। बाड़मेर की सीट पर केन्द्रीय मंत्री कैलाश चैधरी की उम्मीद्वारी के बाद जमीनी हकीकत का देरी से संगठन को पता लगना और रविन्द्रसिंह भाटी को हल्के में आंकना भी भाजपा आलाकमान को भारी पड़ गया। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जिस प्रकार से रविन्द्रसिंह भाटी की मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वह भाजपा के पक्ष में होगा लेकिन भाटी के विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों की स्वीकृतियों को लेकर जिस प्रकार से भाटी को नाराजगी की ओर धकेला गया वह भाजपा के लिए भारी पड़ गया। भाजपा संगठन ने यहां भाटी की उम्मीद्वारी के बाद उसे मनाने तक की कोशिश भी नहीं की जिससे यह सीट भी त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के खाते में आसानी से चली गयी।
-(शंकरलाल चावड़ा)

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